लहसुन की खेती [कमाई, वैरायटी, जानकारी] | Lahsun Ki Kheti Kaise Kare, Garlic Farming

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लहसुन की खेती आमतौर पर ज्यादातर आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में होता है इसके लिए एक निश्चित जलवायु और मिट्टी की जरूरत पड़ती है।

तो बहुत गर्म एरिया और बहुत ठंडे एरिया में इसका उत्पादन अच्छा नहीं आ पाता Lahsun Ki Kheti हम दो तरीके से कर सकते हैं एक तो रासायनिक दवाई का उपयोग करके और एक जैविक विधि (Lahsun Ki Jaivik Kheti ) से कर सकते हैं।

तो जैविक विधि से हम अगर खेती करते हैं तो हमको इसमें काफी खर्चा कम देखने को मिलता है और रासायनिक विधि में दवाई का महंगाई बहुत है इसीलिए खर्चा बढ़ जाता है।

हमको समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण निराई गुड़ाई और खाद और उर्वरक में ध्यान देना पड़ता है।

तो अब हम लहसुन की खेती के बारे में स्टेप बाय स्टेप चर्चा करेंगे कि कैसे सामान्य तरीके से लहसुन की खेती करने का तरीका और इसकी वैरायटी (Variety) के बारे में भी जानेंगे।

लहसुन की जानकारी परिचय (Lahsun Ki jankari)

लहसुन भारत में उपयोग की जाने वाली सबसे उपयोगी खाद्य पदार्थ में से एक है इनकी खेती से कई किसान अच्छी खासी कमाई भी कर लेते हैं।

और लहसुन के बिना सब्जी में स्वाद आना भी मुश्किल सा लगता है इसी कारण लगातार इसको किसान नई तकनीक का उपयोग करके खेती करने लगे हैं कई किसान अभी भी लहसुन की जैविक खेती ही करते हैं और मुनाफा भी अच्छा कमाया जा सकता है।
लहसुन की फसल में दूसरे फसल की तुलना में देखरेख बहुत कम लगता है इसीलिए लहसुन की खेती करना फायदेमंद साबित होता है।

मौसम और जलवायु (Weather And Climate)

लहसुन की खेती के उत्पादन में मौसम और जलवायु का बहुत बड़ा रोल प्ले होता है तो ऐसे में इसके लिए उपयुक्त जलवायु मीडियम तापमान वाले एरिया अच्छा होता है।

तो यूं कहे तो इसके लिए ना तो बहुत गर्म तापमान अच्छा है और ना ही बहुत ठंडा तापमान अच्छा है इसे हम 1000 से 1300 समुद्र तल की ऊंचाई वाली जमीन पर अच्छी उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।

खेत की तैयारी कैसे करे (Khet Ki Taiyari Kaise Kare)

अब हम इसकी खेत की तैयारी के बारे में चर्चा करेंगे तो वैसे तो खेत की तैयारी उतनी मुश्किल नहीं होती क्योंकि हम आमतौर पर खेती करते ही हैं।

तो जैसे हम फसल काटने के बाद खेत की तैयारी करते हैं वैसे ही कर सकते हैं मोटा मोटा बात कहे तो हमको कोई भी फसल काटने के बाद 1 जुताई के बाद दो-तीन बार कल्टीवेटर (Cultivator) चलाना होता है जिससे हमारा खरपतवार नष्ट हो जाता है और आगे हमारा काम सरल हो जाता है।

लहसुन की अच्छी उत्पादन (Production) के लिए हमको खेत की तैयारी करते समय ही कुछ ध्यान रखना पड़ता है।

जैसे हम जैविक खेती (Organic Farming) करते हैं तो हमको 20 से 25 टन सड़ी हुई गोबर डालना होता है जोकि हैरों (Disc Harrow) की मदद से अच्छे से मिट्टी में मिल जाना चाहिए।

लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

लहसुन (Garlic Cultivation) की अच्छी उत्पादन के लिए मिट्टी काफी ज्यादा रोल प्ले करती है तो इसके लिए उपयुक्त मिट्टी मध्यम काली या चिकनी बलुई मिट्टी अच्छी होती है।

क्योंकि इस मिट्टी में पोटाश की मात्रा अच्छी देखने को मिलती है और अगर और इसकी फसल के बारे में बात करें तू जैसे हमारा जड़ वाला फसल जैसे आलू, प्याज, लहसुन इसके लिए भुरभुरी मिट्टी काफी उपयुक्त होती है ।

क्योंकि इससे इसका जड़ अंदर की तरफ फैलता जाता है और जल निकास के लिए भी उपयुक्त जगह मिल जाती है तो इस तरह से इसके लिए मिट्टी उत्तम होती है ।

और अगर संभव हो सके तो मिट्टी का पीएच जांच जरूर करें जो कि लहसुन की खेती के लिए सबसे अच्छा पीएच 5.8 से 6.5 Ph दर अच्छी होती है।

बीज दर और बुवाई का समय (Seed Rate And Lahsun Ki Kheti Ka Samay, Garlic Cultivation Time)

अगर आप सामान्य खेती करते है तो आपको पता ही होगा कि हमें कितनी बीज (Seed) की जरूरत पड़ती है क्योंकि हम ज्यादातर फसल अपने अनुमान के हिसाब से लगाते हैं ।

फिर भी इस की बीज दर की बात करूं तो 400 से 500 केजी पर हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है और फसल लगाने का समय (Cultivation Period ) अगस्त से लेकर नवंबर माह अच्छी होती है।

क्योंकि इस समय गर्मी खत्म होने वाली होती है और ठंडी लगने को होती है तो इसके लिए उचित तापमान इसी महीने में देखने को मिलता है।

भारत की किस्में (Lahsun Ki Variety)

वैसे तो भारत में लहसुन की बहुत सारी वैरायटी देखने को मिलता है लेकिन यहां पर हम कुछ पॉपुलर वरायटी के बारे में बात करेंगे जिसका शायद आप भी उपयोग करते होंगे।

गोदावरी 130 से 140 दिन 150 क्विंटल उपज (Production)

श्वेता 120 से 130 दिन ऊपज 130 kq पर हेक्टेयर

इसके अलावा फवारी, राजली, गादीजी 451, सलेक्षन-2, सलेक्षन-10 और पंजाब की वैरायटी ज्यादातर जमुना सफेद-2, जमुना सफेद-3 होता है तो इस तरह से वैरायटी हमको देखने को मिलता है।

लहसुन की रोपाई (Lahsun Ki Ropai)

Lahsun की रोपाई करने के लिए हमको कलियों का चयन करना पड़ता है क्योंकि कलियों का चयन रोपण के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है।

तो ऐसे में बड़ी कलियां अगर हम रोपण के लिए चयन करते हैं तो काफी उपयुक्त हो जाता है और रोपण करते समय हमको दूरी का भी ध्यान रखना पड़ता है तो 10 सेंटीमीटर की दूरी पर कलिया लगाई जाती है तो इस तरह से लहसुन की रोपाई विधि की जाती है।

लहसुन की खेती मे खरपतवार नियंत्रण (Lahsun me Kharpatwar Niyantran)

अगर हम लहसुन लगाते हैं तो लगाने के 7 से 8 दिनों के बाद कलियों में अंकुरण आने लगता है लेकिन खरपतवार (Weed Management) की बात करें तो तीन-चार दिन बाद ही उग आते हैं।

तो ऐसे में हमको खरपतवार नियंत्रण में काफी ज्यादा ध्यान देना पड़ता है इसके लिए हम इस तरह से रोकथाम कर सकते हैं-

रासायनिक (Chemical)- पेंडीमैथलीन 30 EC/ 3.5 से 4 मिलीलीटर या ऑक्सीफलोरोफिल 25 अनुपात EC का उपयोग 1.52 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ बुवाई के पहले या बाद में स्प्रे कर देना चाहिए जिससे हम खरपतवार पर नियंत्रण पा सकते हैं.

 

निराई गुड़ाई (Nirai Gudai)

Lahsun Ki Kheti में निराई गुड़ाई एक अहम रोल प्ले करती है तो ऐसे में हम जैसे सामान्य फसल का निराई गुड़ाई करते हैं वैसे ही लहसुन की खेती में भी कर सकते हैं।

इसके लिए हम हाथ से निराई गुड़ाई या फिर खूरपी का उपयोग करके करते हैं जो की फसल लगाने के 1 महीने बाद करना पड़ता है।

उसके बाद जरूरत के हिसाब से 2 महीने बाद ही हम निराई गुड़ाई कर सकते हैं और अपने आवश्यकतानुसार भी आप इसकी खेती में निराई गुड़ाई कर सकते हैं।

खाद व उर्वरक (Lahsun Ki Kheti mein Khad, Fertilizer )

अगर आप इसकी खेती जैविक तरीके (Jaivik tarike) से कर रहे हैं तो गोबर खाद या कंपोस्ट का उपयोग कर सकते हैं ।

तो हम इसका उपयोग 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं तथा हम साथ में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश क्रमशः 100,50, 50 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग कर सकते हैं।

और इसका उपयोग हम भूमि की तैयारी के समय और रोपाई के 25 से 30 दिन बाद एवं फसल के 40 से 45 दिन बाद उपयोग कर सकते हैं यह निराई गुड़ाई के समय भी इसको डाल सकते हैं तो इस तरह से हम खाद एवं उर्वरक का उपयोग कर सकते है।

लहसुन की खेती मे सिंचाई (Sichai, Irrigation)

लहसुन की खेती में सिंचाई बहुत जरूरी बात होती है तो अगर हम लहसुन लगा रहे हैं तो हमको बुवाई के समय जमीन को नमी बनाए रखना पड़ता है।

और अगर हम रोपाई (Ropai) के जरिए लहसुन लगाते हैं तो रोपाई के तीन-चार दिन बाद तक भी नमी की आवश्यकता पड़ती है।

क्योंकि इस समय जड़ पकड़ने वाला होता है और पौधे को बढ़ने में सहायता मिलती है उसके बाद हमे सिचाई 10 से 12 दिन के अंतराल में कर सकते हैं।

प्रमुख बीमारियां (Plant Disease)

अगर हम कोई भी फसल लगाते हैं तो उसमें बीमारी लगना एक सामान्य सी बात है तो इसका निवारण भी हो जाता है।

तो इसमें ज्यादातर बीमारी आर्द गलन, बैगनी धब्बा, काला धब्बा और आधार विगलन ज्यादा होता है वही कीट की बात करें तो इसमें थ्रिप्स, कटवा, दीमक ज्यादा परेशान करते हैं।

लहसुन की खेती से कमाई और कीमत (Lahsun Ki Kheti Se Labh)

Lahsun Ki Kheti Profit दूसरे फसल से हमको अच्छी खासी देखने को मिलती है क्योंकि यह फसल ज्यादातर किसान नहीं लगाना चाहते।

तो ऐसे में इसका कीमत (Price) हमको अच्छा देखने को मिलता है तो अभी फिलहाल 2021 में इसके दाम की बात करें तो दिल्ली में 120 से ₹150 किलो तक लहसुन बिक रहा है ।

तो इस हिसाब से अगर आप एक हेक्टेयर में 8 टन 8,000 केजी उत्पादन करते हैं और ₹100 केजी के हिसाब से बेचते हैं तो आप 8 लाख तक हम कमा सकते हैं।

और वही अगर इसमें खर्चा जोड़ दें तो सामान्य सभी खर्चा मिलाकर 1 लाख तक बैठता है तो इस तरह से हमको इसमें ठीक-ठाक कमाई हो जाती है।

तो किसान वीरों यह रही हमारे द्वारा इकट्ठी की गई जानकारी Lahsun Ki Kheti Kaise Kare अगर आपको जानकारी पसंद आई है तो कमेंट करके जरूर बताएं और हो सके तो जानकारी अपने किसान दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते हैं।

आपका प्रेम पूर्वक धन्यवाद,

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